पू. आचार्यश्री विजय पूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की जीवनयात्रा



पू. आचार्यश्री विजय पूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज एक समर्थ साहित्य सर्जक, कलम के कसबी, शब्द के शिल्पी, सर्जन-संपादन के समर्थ सूत्रधार और भाव-भाषा के भंडार है। आकार-आकृति और जाहिर जीवन से अलिप्त होने के बावजूद अक्षर-आलेखन से वो जगहजगह प्रसिद्ध है। गत 45 सालों से गुजराती भाषा के लेखक की हैसियत से उन्होंने अपनी मोहक कलम के द्वारा चिंतन, मनन, कथाप्रसंग, धारावाहिक जीवनकथायें का सर्जन किया है। 140 से ज्यादा पुस्तकें उन्होंने जैन संघ को एक प्रसादी के रुप में अर्पित की है। जैन संघ के अनूठे ‘कल्याण’ मासिक के वो शास्त्रीय मार्गदर्शक है। संपादन और संकलन की अनूठी कला और सूझ से संपन्न पूज्यश्री ने ऐतिहासिक-आगमिक कथा-साहित्य, जैन कथा-साहित्य, संस्कृति और धर्मरक्षा के लिए जोश पैदा करें ऐसे वर्तमान प्रसंगो के अतिरिकत चिंतन और मनन से साहित्य की भरपूर भेंट जैन संघ को प्रदान की है। मितभाषी पूज्यश्री की अनुभवी कलम में ऐसी तो ताकत छिपी है कि कलम से कागज़ पर आलेख्य सभी पात्र मानों हमारी साथ बातें कर रहें हैं, हमें संदेश दे रहें हें, खुमारी और खमीरी पैदा कर रहें हैं, ऐसा लगता है। सिर्फ 9 साल की उम्र में दीक्षित बनें पूज्यश्री ने गुजराती भाषा पर ऐसा काबू जमाया है कि उनकी किताबें गुजराती शब्दकोश की अपूज्य निवि बन शकती है। पिताश्री और लघुबंधु के साथ संयम को स्वीकार करके गुरुजनों की सेवा से यह साहित्य पुरुष ऐसे आशीर्वाद के धनी हो गये है कि आज के गुजराती लेखको में उनका यशस्वी-तेजस्वी नाम और काम मशहूर है।

पूज्यश्री के संयम जीवन के 50 साल पूरे हुए तब मुंबई में ओगष्ट क्रांति मैदान पर एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया था और इस समारोह में एक साथ 25 पुस्तकों का विमोचन हुआ। अभी 2072 वैशाख महिने में पूज्यश्री के आचार्य पद रजत उत्सव के अवसर पर नए पुस्तकोंका विमोचन होने जा रहा है। जानेपहचाने सुप्रसिद्ध लेखकगण भी जिनकी कलम-सृष्टि को द्रष्टिगोचर किए बिना रहते नहीं, ऐसे सिद्धहस्त साहित्य सर्जक पूज्यश्री ने ‘गुजरात समाचार’ की ‘धर्मलोक’ पूर्ति में प्रति गुरुवार ‘श्री रामचन्द्राचार्य़ दीक्षा शताब्दी’ के अवसर पर नियमित एक साल तक उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं को लेखमाला के रुप में प्रस्तुत की थी। और पीछळे तीन गत ड़ेढ-दो साल से सौराष्ट्र के ‘फूलछाब’ दैनिक की बुधवार पूर्ति में ‘युगदर्शन’ कोलम में भी संस्कृति के लिए समर्थित वीरों के जीवनप्रसंग प्रकट होते रहे है। जानेपहचाने पुस्तक प्रकाशक और विक्रेता ‘गूर्जर प्रकाशन’ने भी “ताजो इतिहास, ताजी सुवास” और “अहिंसानी अमरवेल” नामके पुस्तकों का प्रकाशन कर के उनकी साहित्य यात्रा को जन-जन तक पहुँचाई है। हररोज 8से10 घंटे लेखन-वाचन और चिंतन-मनन के द्वारा पूज्यश्री साहित्यमय बनें हैं।

सब से महत्त्व की बात है कि भगवान श्री महावीरस्वामी की ‘श्रुतधारा’ को संशोधित, सुलिखित, संवर्धित और सुरक्षित करने के लिए गत 10 सालों से जिनकी प्रेरणा से 45 आगम उपरांत असंख्य धर्मग्रंथोंके पुर्नलेखन का अभियान बड़े पैमाने पर चल रहा है। उन्हीं के निष्कर्ष रुप शंखेश्वर महातीर्थ के प्रवेशद्वार पर साढ़े चार लाख चोरस फुट की विशाल भूमि पर प्रवचन ‘श्रुततीर्थ’ का निर्माण तेजी से आगे बढा रहें है, जहाँ पर 100से ज्यादा लहियें निरंतर ग्रंथ-लेखन का कार्य करेंगे, असंख्य साधुसाध्वीजी न्याय-व्याकरण-काव्य-कोष आदि के उच्चतम अभ्यास के लिए स्थिरता करेंगे।