प्रवचन श्रुततीर्थः प्रेरक, मार्गदर्शक पूज्य गुरुदेव का सपना



भगवान श्री महावीर स्वामी के शासन की चिंतनीय अमुल्य सौगात् एवम् जिनशासन के प्राण-त्राण आधार स्वरुप ‘श्रुतरु’ की वर्तमान स्थिति अत्यंत चिंतनीय बन चूकी है ।

पूर्व काल में चोंरासी आगम ग्रंथों का गणिपिटक श्रुतज्ञान आचार्यादि श्रमण भगवंतो को मुखपाठ होता था । और ग्रंथो के मुखपाठ की परम्परा होने की वजह, उन्हे लिपिबद्ध करने की आवश्यकता नही समझी जाती थी ।

प्रभु वीर के निर्वाण के बाद 180 साल पश्चात् सिद्धगिरिराज की प्राचीन तलहटी वल्लभीपुर में श्री देवर्द्धि गणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में 500 आचार्य भगवंतोने, कालानुसार स्वाध्याय की हानि होने से एवम् स्मरण शक्ति का ह्रास देखके जिनशासन के जितने भी ग्रंथ उपलब्ध थे, उन सभी शास्त्रो को लिपीबद्ध करने का प्रयास प्रारंभ किया, ताकि, यह अनमोल सौगात सुरक्षित हो जाय । यह कार्य तेरह – तेरह वर्ष तक अनवरत चलता रहा, जिसमें करिबन एक करोड ग्रंथो का संकलन हुआ ।

समय का प्रभाव और लिपिबद्ध ग्रंथों की देखमाल करने में होती लापरवाही की वजह ग्रंथो का विनाश बडी संख्या में होने लगा । अनेक ग्रंथो को जल समाधि प्राप्त होने से खत्म हुए तो कइ ग्रंथ विदेशीओ के आक्रमण के भोग बने । शेष बचे हुए धर्मशास्त्रो को अंग्रेजो ने हस्तगत कर लिए । इस तरह हमारे जैन शासन की यह अनमोल सौगात विखर गयी और तहस नहस ।

जिनशासन की सौगात स्वरुप इन ग्रंथो की ऐसी स्थिति और हमारे जैन संघ की उस कार्य के प्रति उदासीनता को देखते हुये आचार्य प्रवर श्री पूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी एवम् आचार्य श्री युगचन्द्रसूरीश्वरजी वर्षों से काफी चिंतित थे ।

गत 150-200 साल से मुद्रण युग का प्रभाव-प्रचार जोर –शोर से होने की वजह हस्तलेखन कला इतिहास के पन्नो में खोगयी । लेखन के लिए उपयुक्त साधनो की जानकारी भी ऐसी परिस्थिति में मिलना सहज नहीं था । लेखनकला को उजागर करने के काफी प्रयास हुए । जिसके फल स्वरुप इतिसास के पन्नो में लुप्त हुई इस प्रवृति की एकबार फिरसे गति प्राप्त हुई ।

वि.सं. 2051 में इस कार्य के प्रेरणादाता एवम् आशीर्वाद दाता सिद्धहस्त लेखक पू.आचार्यदेव श्री विजय पूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की संयम साधना के पचास वर्ष पूर्णाहुति निमिते आयोजित भव्याति भव्य श्रुत महापूजा के प्रदर्शन में इस कार्य की नींव रखी गयी ।

समय के साथ – साथ हर किसी की प्रबल ईच्छा ऐसी बनी की ‘श्रुत’ के ही कार्य को लक्ष्य में रखते हुए ऐसा नयनरम्य का निर्माण हो, जहां से श्रुतरक्षा का संदेश विश्व के चारो दिशा में गुंज उठे और भक्तो को इस महान कार्य में तन-मन – धन से योगदान देने का सुवर्ण अवसर प्राप्त हो जाये ।

इस बात का ख्याल करते हुए शंखेश्वर तीर्थ के आंगन में प्रगट प्रभावी श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ दादा की छत्र छाया में ‘प्रवचन श्रुततीर्थ’ का निर्माण कार्य अत्यंत हर्ष और उल्लासमय वातावरण में प्रारंभ हुआ ।

'सपने' वह 'सपने' होते है जो हमें निंद लेने ही नही देते, ना की वह सपने जो हमें निंद में आते है, इस बात को आत्मसात करने, इस सपने को साकार करने हेतु गुरुदेव के शुभ आशिष से ‘श्रुतरक्षा’ का यही एक लक्ष्य लेकर पू. आचार्य श्री विजय युगचन्द्रसूरीश्वरजी म. सकल संघ को श्रुतरक्षा के लिए सतत प्रेरित करते रहे. फल स्वरुप शंखेश्वर तीर्थ में प्रवचन-श्रुततीर्थ नामक एक विराट ज्ञानसंकुल साकार हो रहा है ।

जिनशासन की सौगात स्वरुप उपलब्ध 15 हजार मूल ग्रंथ एवम् 35 हजार संदर्भ ग्रंथ ऐसे कुल 50 हजार धर्मशास्त्र ग्रंथो के करिबन 5 करोड पन्नो को चिरकाल टिकाउ सांगानेरी कागज पर सुंदर अक्षरो में पुनः लिखित करवाकर आनेवाली हमारी भावी पेढी के लिये हजारो साल तक यह – प्रदर्शक बनती रहे । इसी एकमात्र अभिलाषा और लक्ष्य को लेकर पूज्यश्रीने अपना तन- मन-जीवन इस कार्य में समर्पित किया है । शीघ्रता से सभी ग्रंथो का एक संचय हस्तलिखित करवाकर सुरक्षित करने हेतु कटबिद्ध है, और इस दिशा में पू.गुरुदेव का सतत पुरुषार्थ जारी है । इसलिए पूज्यश्री द्वारा संजोये हुए स्वप्न को शीघ्रतासे साकार करने में हम सभी भी अपना सहयोग अवश्य प्रदान करें....